नई दिल्ली: Watermelon, आलम यह है कि माधुरी तरबूज madhuri breed का उत्पादन हाथों हाथ बिक रहा है और इस नस्ल के तरबूजों ने किसानों के घरों पर पैसों की बरसात कर दी है.
Govtnews24: Business Ideas, माधुरी किस्म के तरबूजों का वजन अधिक होने के कारण कुल उत्पादन भी बढ़ रहा है। तरबूज की खेती के लिए दूसरे राज्यों के लोगों ने भी इस नस्ल को लगाने की तैयारी कर ली है।
जानिए तरबूज की माधुरी किस्म से किसान कैसे मोटी कमाई करते हैं
गर्मी के मौसम के कुछ फल और सब्जियां ऐसी होती हैं, जिनकी जबरदस्त डिमांड रहती है. गर्मी से राहत दिलाने वाला और पानी से भरपूर ठंडा फल तरबूज इन दिनों पूरे भारत में पहली पसंद बना हुआ है. जैसे-जैसे गर्मी का तापमान बढ़ता है, इसकी मांग बढ़ती रहती है। तरबूज का सेवन लोगों को मिठास और सेहत प्रदान करता है इसलिए तरबूज की खेती इसका उत्पादन करने वाले किसानों के लिए आर्थिक विकास का एक बेहतर विकल्प बन गया है।
Watermelon Farming , प्रदेश के गाजीपुर और आसपास के कई गांवों में गंगा किनारे के खेतों में हजारों एकड़ में तरबूज की फसल लहलहा रही है. तरबूज की यह खेती बनारस से लाए गए तरबूज की एक खास नस्ल के बीज उगाकर की गई है. इसके बंपर उत्पादन पर किसानों की खुशी का ठिकाना नहीं है। माधुरी नस्ल के इन तरबूजों की मिठास ने सभी को अपनी ओर खींच लिया है.
माधुरी किस्म के तरबूज की मुख्य विशेषताएं क्या हैं
तरबूज खाने में मीठा तो होता ही है, लेकिन इसकी बनारस नस्ल का कोई जवाब नहीं है। यह नस्ल माधुरी नस्ल के नाम से लोकप्रिय हो रही है। गाजीपुर और उसके आसपास के सैकड़ों किसान तरबूज की इस किस्म की खेती कर मोटी कमाई कर रहे हैं. इसकी मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं
यह तरबूज विशेष रूप से मीठा होता है।
इसमें छिलका पतला होने के कारण खाने योग्य पदार्थ अधिक होता है।
माधुरी नस्ल के तरबूज का वजन 8 से 12 किलो तक होता है।
इस नस्ल की फसल 70 से 75 दिनों में तैयार हो जाती है।
दिल्ली, झारखंड, बिहार, यूपी, राजस्थान सहित कई राज्यों में माधुरी किस्म के तरबूज की भारी मांग है।
तरबूज की अच्छी उपज कैसे प्राप्त करें?
अगर आप किसान हैं और तरबूज की खेती करना चाहते हैं तो आपको इसके लिए पूरी तैयारी करने की जरूरत है। तरबूज की खेती 5-8 और 6-6 के पीएच मान वाले खेतों में अच्छी होती है। सबसे पहले खेत की मिट्टी की जांच करा लें। खेत से मिट्टी-पत्थर, कंकड़ आदि निकालने के लिए जुताई यंत्र का प्रयोग करें। इसके अलावा बीज बोने के बाद सिंथेटिक खाद डाली जाती है। तरबूज के पौधे को बढ़ने के लिए अधिक जगह की आवश्यकता होती है, इसलिए इनके बीज बोते समय निश्चित दूरी के मापदंड को अपनाना चाहिए। साथ ही किसी कृषि अधिकारी की सलाह भी जरूर लें।
तरबूज की खेती में कम लागत, ज्यादा मुनाफा
तरबूज की खेती में ज्यादा खर्च नहीं आता है. यह ऐसी फसल है जो रेतीले इलाकों में भी अच्छी तरह से पैदा होती है। इसकी खेती करने वाले किसान बताते हैं कि प्रति बीघा तरबूज की बुवाई में करीब 18 हजार रुपये का खर्च आता है. इसकी पहली कटाई जून के महीने में शुरू होती है। इसके बाद फलों को बड़े ट्रकों में भरकर बाजार ले जाया जाता है।
इस बार माधुरी नस्ल के तरबूजों की विशेष मांग पर बिहार और झारखंड भी भेजे गए. वहां किसानों को स्थानीय दर से कई गुना अधिक मिला। इससे किसानों को भारी मुनाफा हुआ। तरबूज की बिक्री अधिक होने से इसका सीधा फायदा किसानों को हुआ है. यह एक नकदी फसल है। तरबूज की खेती से अधिक कमाई करने वाले किसान अगली बार भी वही फसल करना चाहते हैं. वहीं दूसरी ओर अन्य किसान भी धान, गेहूं आदि फसलों की जगह अधिक बिक्री योग्य फल जैसे सब्जियां व तरबूज की खेती करना चाहते हैं।
गंगा किनारे जमीन लीज पर लेकर खेती करते हैं
यूपी के गाजीपुर, भदौरा, दिलदार नगर, गहमर आदि इलाकों में सैकड़ों किसान ऐसे हैं, जिनके पास खुद की जमीन नहीं है. ये लोग 15 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन लीज पर लेकर तरबूज व सब्जी की खेती कर रहे हैं। ये किसान तरबूज के अलावा भिंडी, खीरा, लौकी, टिंडा आदि का उत्पादन कर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं.